साल 1982 के बाद ओजोन में अब तक का सबसे छोटा छेद: NASA
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा साल 1982 से ओजोन के छेद के आकार पर नजर बनाये हुए है तथा इस बार सबसे छोटे छेद के रूप में दर्ज किया गया है. विश्व स्तर पर बढ़ते तापमान के बीच ओजोन के छेद में बहुत बड़ी गिरावट देखी गई है. यह पिछले 37 सालों में ओजोन के सबसे छोटे छेद के रूप में रिकॉर्ड किया गया है.
नासा के मुताबिक, अंटार्कटिका के ऊपरी वायुमंडल में असामान्य मौसम के पैटर्न के वजह से साल 1982 में वैज्ञानिकों ने इसकी जांच शुरू कर दी थी क्योंकि ओजोन परत में छेद अपने सबसे छोटे आकार तक सिकुड़ गया है. प्रत्येक साल छेद के आकार में उतार-चढ़ाव आता है. दक्षिणी गोलार्द्ध में आमतौर पर सबसे ठंडे महीनों के दौरान सितंबर के अंत से अक्टूबर के शुरू तक सबसे बड़ा होता है.
नासा के मुताबिक, ओजोन को नष्ट करने की प्रक्रिया में 'मुख्य घटक' ध्रुवीय समतापमंडलीय बादल होते हैं. ये अपेक्षाकृत दुर्लभ शरीर सतह से ऊपर करीब 49,000-82,000 फीट के बीच ऊंचाई पर समताप मंडल में उच्च होते हैं.
ओजोन गैस की परत
ओजोन गैस की परत पृथ्वी की सतह के ऊपर करीब 11 किलोमीटर से 40 किलोमीटर के बीच फैली हुई है. ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है. नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, बीते चालीस वर्षो में तीसरी बार तापमान बढ़ने के वजह से ओजोन परत में बन रहे छिद्र का आकार घटा है. इससे पहले साल 1988 और साल 2002 में भी ऐसा देखने को मिला था.
ओजोन होल क्या है?
ओजोन पृथ्वी के वायुमण्डल की एक मोटी परत है. यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पैराबैंगनी किरणों के 99 प्रतिशत भाग को अवशोषित कर लेती है. आधुनिक सुख सुविधाओं के साधनों जैसे एयर कंडीशनर, फ्रिज, भारी वाहनों तथा कारखानों से निकली हानिकारक गैसों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन आदि के वजह से इस परत में एक छेद हो गया था. इसी छेद को ओजोन होल के नाम से जाना जाता है. यह छेद अंटार्कटिका के ऊपर है. वैज्ञानिकों को साल 1982 में सबसे पहले इसके बारे में पता लगा था. वैज्ञानिक द्वारा तब से इसपर लगातार निगरानी रखी जा रही है.
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