अजंता गुफा चित्रकला
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-National Environmental Engineering Research Institute-NEERI) द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, अजंता के गुफा-चित्र पिछले कुछ दशकों में कीड़ों और अन्य जलवायु तनावों के कारण विकृत हो रहे हैं।
World Heritage Site |
मुख्य बिंदु:
- अजंता गुफा चित्रकला बौद्ध कला की उत्कृष्ट कृति एवं यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल हैं और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) का संरक्षित स्मारक हैं।
- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) की एक शोध टीम ने अजंता की गुफाओं से संबंधित उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया और इनके चित्रों को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न कारकों को रेखांकित किया तथा साथ ही इस समस्या के कुछ पर्यावरण अनुकूल समाधानों का भी उल्लेख किया है।
चित्रकला को प्रभावित करने वाले कारण:
- NEERI के अनुसार, अजंता चित्रों को हानि पहुँचाने वाले कीड़ों में सिल्वर फिश, झींगुर और सामान्य कीड़े थे।
- एक अन्य मुख्य कारण वर्षा जल तथा वाघुर नदी से पानी का प्रवेश था। यह गुफा के वातावरण में नमी पैदा करता है, जिससे शैवाल, कवक, कीड़े और सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। ये सभी एक साथ चित्रों के मूल रंग जैसे- सफेद रंग को पीले रंग में और नीले रंग को हरे रंग में बदल रहे थे।
सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति के कारण:
- अजंता की गुफाओं के पास स्थित एलोरा की गुफाओं में चित्रों एवं नक्काशी के संरक्षण के लिये जूट, चूना और मिटटी के प्रभावी मिश्रण का उपयोग किया गया था लेकिन अजंता की गुफाओं में इस पद्धति का उपयोग नहीं किया गया था।
- पिछले अध्ययनों से पता चला है कि भित्ति चित्रों की आधारभूत परत मिट्टी के प्लास्टर और कार्बनिक पदार्थ जैसे धान की भूसी, घास, वानस्पतिक रेशों से बनी थीं, इस प्रकार यह रोगाणुओं और कीड़ों के लिये एक अच्छा प्रजनन स्थल बना।
- हालाँकि ASI ने चमगादड़ों और कबूतरों के अजंता गुफाओं से बाहर निकलने के लिये कई पहलें शुरू की हैं परंतु ये सभी पहलें विफल हो गईं जिससे चमगादड़ तथा अन्य पक्षियों के मल-मूत्र से गुफा-चित्रों को नुकसान पहुँचता है।
निवारण हेतु सुझाव:
- शोधकर्त्ताओं ने कीड़ों की समस्या से निपटने के लिये कुछ प्रकाश और रंगों का उपयोग करने का सुझाव दिया है। उदाहरण के लिये उन्होंने रात्रिचर कीड़ों से बचाव के लिये पराबैंगनी प्रकाश का जाल बिछाने का सुझाव दिया है क्योंकि रात्रिचर कीड़े पराबैंगनी विकिरण की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं।
- इसके साथ ही दिन में विचरण करने वाले कीड़े पीले रंग की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं इसीलिये शोधार्थियों ने इस प्रकार के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिये पीले प्रकाश का जाल बिछाने का सुझाव दिया है। यह सुझाव कीट-पतंगों के नियंत्रण के लिये भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
- कीड़ों के प्रकाशानुकूल व्यवहार को समझकर उपयुक्त तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का प्रयोग कीड़ों को आकर्षित करने के लिये किया जा सकता है।
- अजंता के चित्रों को विकृत होने से बचाने के लिये ASI वर्तमान में कुछ निवारक उपचार कर रहा है जैसे कि कीटनाशकों और शाकनाशियों का छिड़काव, गुफा की दीवारों के ढीले प्लास्टर को ठीक करना, नियमित सफाई और दीवारों पर परिरक्षकों का लेप करना।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन
(United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization-UNESCO)
- UNESCO की स्थापना 16 नवंबर, 1945 को लंदन में हुई थी।
- इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में है।
- UNESCO का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से राष्ट्रों के बीच सहयोग बढ़ाकर शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना है ताकि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित न्याय, मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।
UNESCO की विश्व धरोहरों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है-
- प्राकृतिक धरोहर स्थल
- सांस्कृतिक धरोहर स्थल
- मिश्रित धरोहर स्थल
सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान
(CSIR-National Environmental Engineering Research Institute-NEERI):
- NEERI वर्ष 1958 में भारत सरकार द्वारा नागपुर में स्थापित और वित्तपोषित संस्थान है।
- इसकी स्थापना का उद्देश्य पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग में नवाचार और अनुसंधान करना है।
- NEERI वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक घटक प्रयोगशाला है।
- इसकी पाँच क्षेत्रीय प्रयोगशालाएँ क्रमशः चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कलकत्ता और मुंबई में स्थित हैं।
0 comments:
Post a Comment